जासूसी
बद्री बाबू आज बहुत दिनों के बाद घर आये हैं। अचानक
इतने दिनों बाद उनको देख कर मैं भी अचंभित हूँ। 'आइये बद्री बाबू ,
आज बहुत दिनों के बाद आना हुआ । क्या
बात है आपकी तबियत तो ठीक रहती है न?' मैंने प्रश्न वाचक के साथ वार्तालाप शुरू की। 'हाँ हाँ मैं बिलकुल ठीक हूँ, बस यूँ ही कुछ समय से व्यस्त चल रहा था। आप सुनाइए मास्टर जी आप कैसे
हैं?' 'मास्टर जी' उपनाम बद्री बाबू का ही दिया हुआ है। दरअसल
मैं नगर निगम के कार्यालय में एक मामूली सा क्लर्क हूँ और बद्रीबाबू वहां के बाबू
हैं लेकिन मेरी रूचि सामाजिक कार्यों और गतिविधियों पर ज्यादा होने की वजह से मुझे
मास्टर जी बुलाने लगे। मेरी मुलाकात बद्री बाबू से यही कोई पांच वर्ष पहले तब हुई जब कार्यालय के काम के
सिलसिले में मुझे बदरीनाथ मिश्रा उर्फ़ बद्री बाबू के पास जाना पड़ा तब वे दूसरा कार्यालय
सम्हालते थे। बदरीनाथ जी वैसे दिल के हैं तो बहुत अच्छे लेकिन जासूसी उनके दिमाग में घुसी हुई
है। शायद
जासूसी नॉवेल पढ़ पढ़ के ये हाल हुआ है। किस कार्यालय में क्या चल रहा है ये जानने
का उनको बड़ा शौक रहता
है, और इससे इनका समय भी कट जाता है। बहरहाल पिछले ३ वर्षों से बद्रीनाथ
मिश्रा जी हमारे ही कार्यालय में बाबू की हैसियत से कार्य कर रहे हैं और तभी से मेरी और उनकी
अच्छी जमती भी है। कभी वो मेरे घर आ जाते हैं तो कभी मैं उनके घर चला जाता हूँ।
आज रविवार का दिन है खुशनुमा मौसम है मैं अपने
छोटे से कमरे की तखत पर लेटा हुआ कुंदन लाल सहगल का गीत 'एक बंगला बने न्यारा' सुन रहा हूँ और रह रह कर मेरी निगाह
ऊपर की दीवार के कोने में लगे हुए मकड़ी के जाले की तरफ जा रही है ! इतने में कमरे
की घंटी बजती है और बदरीनाथ मिश्रा जी का आगमन होता है। उम्र ४९ साल ,कद लगभग ५ फ़ीट ८ इंच का होगा। चेहरा
लम्बा हलकी सी दाढ़ी और मूंछ, बाल
मध्यम आकार के और वजन लगभग ७० किलो का होगा। देखने में बदरीनाथ जी ठीक ठाक दिखते हैं।
चूंकि बाबू हैं इसलिए लोग उनका थोड़ा ख़ौफ़ भी खाते हैं ।
'मस्टर
तुम यहाँ गाने सुन रहे हो और बाहर क्या हो रहा है तुमको कुछ पता भी है ?' बदरीनाथ जी ने कुछ तीखे स्वर में पुछा।
'बाहर? बाहर भला ऐसा क्या हो गया जो मुझे
मालूम होना चाहिए ?' मैंने
भी प्रत्युत्तर में प्रश्न दाग दिया। 'अरे मास्टर तुम भी न'
हाँथ में पकडे हुए झोले को एक किनारे
रखते हुए बद्री बाबू तखत के बाजु वाली कुर्सी में अपनी तशरीफ़ टिका के बैठ गए।
मैंने पान मंगवाने का इशारा किया और फिर पानी का गिलास थमाते हुए पूछा - 'हाँ तो आप क्या कह रहे थे बाहर क्या हो रहा है ?' 'मास्टर
वो जो दो गली छोड़ के पानी की बड़ी टंकी है
न उसके बाजु में एक पुरानी व्यायाम शाला है जहाँ अक्सर लड़के सुबह शाम कुश्ती सीखने
और कसरत करने जाते हैं।' मैंने कहा - 'हाँ वो तो मुझे मालूम है' 'पर
तुमको ये नहीं मालूम की वहां कल रात चोरी के इरादे से कोई घुसा था लेकिन आश्चर्य
की न तो व्यायाम शाला का ताला टूटा और न ही कोई और ही जगह है जहाँ से कोई घुस सके।' मैंने तपाक से पुछा - 'यदि ताला नहीं टूटा तो ये कैसे पता की
कोई चोरी के इरादे से घुसा था?'
' अरे मास्टर वहां का सारा सामान अस्त व्यस्त था।' 'क्या कोई सामान चोरी भी हुआ?' ' नहीं कोई सामान चोरी नहीं हुआ पर कोई
तो है जो घुसा था ?' 'अरे
आप भी कहाँ की बातें ले कर बैठ गए ,
छोड़िये न चोरी चकारी की बातें। आपके लिए बढियाँ कलकतिया पान मंगवाया
है। ' इतने में मैं
बाबू के लिए चाय चढाने चला गया। वापस आकर देखा तो बाबू किसी उहा पोह में लगे हुए
थे जैसे दसवीं की परीक्षा के सवाल का हल ढून्ढ रहे हों। 'बाबू क्या हुआ? अभी भी उस चोरी के बारे में सोच रहे
हैं क्या?' मैंने
आश्चर्य चकित मुद्रा में सवाल ठोक दिया। 'हाँ मास्टर मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की यदि उस व्यायामशाला में आने
जाने का एक ही रास्ता है जिसमे ताला डला
हुआ है तो फिर आखिर चोर अंदर घुसा कैसे?' 'हो सकता है उसके
पास डुप्लीकेट चाभी हो उसकी और वो आराम से ताला खोल के अंदर घुस गया हो और फिर
आराम से बहार चला गया हो।' 'हाँ
हो सकता है लेकिन जब चोरी के इरादे से घुसा था तो फिर उसने चोरी क्यों नहीं की?' ' अरे बाबू क्या पता उसका दिमाग आपके तरह
तेज न चलता हो !' मैंने
ताना देने के लहजे में बाबू के सामने गरमा गरम चाय का प्याला सरका दिया। बाबू मेरी तरफ एक टक देख कर चाय की तरफ मु कर
लिए और मैं मन ही मन मुस्कुरा कर रह गया। 'अच्छा बद्री बाबू आपको क्या लगता है
क्या हुआ होगा ?' मैंने
उनके मन की उत्सुकता और मेरी उस चोरी की तरफ नीरसता को भांप लिया और वार्तालाप को
आगे धकेल दिया। कुर्सी से टांगें लम्बी करते हुए तखत के सहारे टिका कर बद्री बाबू
आगे बोले- 'मुझे
लगता है वो चोर बहुत ही शातिर है। उसने शायद उस वक्त व्यायाम शाला में घुसपैठ
बनायीं जब वहां कोई नहीं था। संभवतः उसको बाहर निकलने का समय न मिला हो और दरवाजा
रात में बंद कर के सब चले गए हों। और फिर जब सुबह दरवाजा खुला तो मौका पा के वो
चम्पत हो गया इस डर से की कहीं रंगे हांथों पकडे न जाऊं। ' वाह बाबू आपका दिमाग तो चाचा चौधरी से
भी तेज चलता है। ' मैं
जोर से हंसने लगा। बाबू गंभीर होते हुए - 'अच्छा तो तू ही बता दे फिर क्या हुआ होगा?' ' अरे बाबू मैं क्या जानू, वो चोर जाने और उसका काम। ' ' अरे वाह ऐसे कैसे वो चोर जाने?, हम एक ज़िम्मेदार नागरिक हैं तो हमारा
भी तो कोई फ़र्ज़ बनता है की नहीं ?'
'फ़र्ज़? अरे
बाबू ये काम तो पुलिस का है , वो
ढूंढेगी उस चोर को आप क्यों सर खपाते हैं अपना इसमें?' 'मास्टर
यदि पुलिस इतनी ही मुश्तैद होती तो फिर बात ही क्या थी। खैर चलो चाय पीके थोड़ा टहल
के आते हैं व्यायाम शाला तक। देखें तो ज़रा क्या हो रहा है वहां। मैं जब आज वहां से
आ रहा था तो कुछ लोग इकठ्ठा खड़े थे। हो सकता है चोर का कुछ पता चला हो। ' बद्री बाबू ने मुझे जल्द से जल्द तैयार
होने के लिए आँखों से इशारा किया। अब मैं भला उनकी बात कैसे टालूँ? एक तो छुट्टी का दिन,
आराम से अपने तखत में लेट के कुंदन लाल सहगल का गाना सुन रहा था और
अब ये मुसीबत। अब बद्रीनाथ नाम की ओखली में सर दिया है तो जासूसी नाम की मुसल से
क्या डरना। मैं लपक के अंदर गया और एक सूती कुरता बदन पर डाल के आ गया। मुझे देख
के बद्री बाबू ऐसे मुस्कुराये मानों उनकी बारात में जाने की तयारी हो रही हो ! पान
की एक गिलौची मु में दबाये बद्री बाबू चले जा रहे थे और मैं बार बार मुड़के अपने
दूर होते घर की तरफ देख रहा था मानों मन ही मन उसको सांत्वना दे रहा हूँ की मैं
जल्द ही वापस आऊंगा और फिर तखत पर बैठ के सहगल जी को सुनूंगा।
हम व्यायाम शाला पहुंचे तो वहां पहले से मौजूद
गुड्डन पहलवान, धोबी
और दो चार लोग खड़े थे। बद्री बाबू ने पूछा - 'अरे गुड्डन भाई क्या हुआ चोर का कुछ पता चला क्या ?' ' नहीं बद्री बाबू अभी तक तो नहीं। पुलिस
को भी नहीं बता सकते क्यों की चोरी तो कुछ गया नहीं सिर्फ सामान अस्त व्यस्त हुआ
है। मानो चोर पहलवानी करने आया था और पहलवानी कर के चला गया। ' सब हंसने लगे। मैंने भी अंदर जा के देखा तो व्यायाम करने का
लगभग सारा सामान बिखरा पड़ा था। मुग्दल, डम्बल , रस्सा
, लठ्ठ। मैंने
गुड्डन से पूछा ' पहलवान
जी आपको किसी पे शक है क्या ?'
'नहीं मास्टर जी किसी पे नहीं' और गुड्डन दूसरी तरफ मूं कर के कुल्ला करने लगा। मैंने धीरे से बद्री
बाबू के कान में फुसफुसाया। 'बाबू
मुझे तो ये पहलवान ही गड़बड़ लग रहा है। ' बाबू थोड़ा झेंप गए और मुझे चुप रहने को कह दिया। कुछ देर वहां रुकने के बाद हम दोनों पनवारीलाला
की दुकान से होते हुए किशोरी की होटल की तरफ हो लिए। 'अरे किशोरी दो गरमा गरम समोसे तो बना' 'अरे
बद्री बाबू, आइये
आइये, आज बड़े दिनों
बात इस गली का रुख किया आपने।' किशोरी
और बद्री बाबू पुराने परिचित हैं। बद्री बाबू अक्सर किशोरी की होटल में चाय और
समोसे खाने आते रहे हैं। कभी कभी मैं भी उनके साथ आ जाया करता हूँ । आज देखना है की
सिर्फ चाय मुफ्त की मिलेगी या समोसा भी, क्यों की अक्सर बद्रीबाबू सिर्फ चाय ही पिलाया करते हैं। न जाने आज
समोसा कैसे खिला पाएंगे।
'अरे
किशोरी वो पानी की टंकी वाली व्यायाम शाला की चोरी के बारे में कुछ खबर है तुमको ?' बद्री बाबू ने किशोरी को तहकीकात के
अंदाज में पूछा , मनो
ये खुद सी-आई-डी वाले हों। 'हाँ बाबू कुछ सुना तो है लेकिन अच्छे
से मालूम नहीं। लोग बातें तो कर रहे थे। ' 'आपने क्या सुना बाबू ?' किशोरी
ने उल्टा प्रश्न पेल डाला। 'अरे
मैं तो अभी वहीँ से आ रहा हूँ लेकिन कुछ निष्कर्ष नहीं निकला। खैर तू रहने दे , गरमा गरम दो चाय बना अदरक डाल के।' अब तक शाम के लगभग साढ़े पांच बज गए थे।
हम दोनों चाय समोसा खा के घर की ओर चल दिए। घर पहुँच के बद्री बाबू बोले ' मास्टर मुझे लगता है हमको कमेटी
बुलवानी चाहिए चोर को पकड़ने के लिए। आज व्यायामशाला में चोरी हुई है कल को
तुम्हारे घर में भी हो सकती है। '
अरे शुभ शुभ बोलिये बद्री बाबू , मेरा ही घर मिला है आपको लुटवाने के लिए ?' मैने तपाक से पलट के प्रश्न दागा। 'तुम्हारे घर में वैसे भी है क्या ? एक टूटी फूटी अलमारी, कुछ कपडे , एक दो दर्जन किताबें और ये पुराना सा
ट्रांसिस्टर। चोर आएगा भी तो अफ़सोस के अलावा कुछ न ले जा पायेगा।' इतना बोल के बद्री बाबू जोर जोर से
हंसने लगे। मैं उनकी चुटकीली हंसी को बस घूरता रह गया।
बद्री बाबू की धर्म पत्नी का स्वर्गवास हुए तीन
साल बीत चुके हैं। उनकी एक बेटी है जिसकी
शादी बुरहानपुर जिले में एक सरकारी नौकरी वाले लड़के से कर दी है। अब बद्री बाबू
अकेले ही घर पर रहते हैं। भोजन अच्छा बना लेते हैं। मैंने भी शादी नहीं की। माता पिता के गुज़र जाने
के बाद दो बहनों की शादी करवाई और मैं भी अकेले ही रहने लगा। हम दोनों के अकेलेपन
को दूर करने का यही तरीका रहता है। एक दूसरे के घर में धावा बोल के यहाँ वहां की
बातें करना और साथ में बैठ के भोजन करना। 'अरे मास्टर ये तो बताओ आज रात के भोजन
में क्या बना रहे हो ?' मैं
समझ गया की आज बद्री बाबू देर रात तक यहीं ठहरेंगे। वैसे उनके रहने से अच्छा ही
लगता है लेकिन उनकी जासूसी की आदत कभी कभी बहुत झुंझला देती है। 'कुछ खास नहीं बाबू। बस सोच रहा हूँ आलू गोभी की रसीली सब्जी और रोटी
बना लूँ। ' 'अरे
तुम क्यों बनाओगे ? मैं
तुम्हारी मदद करूँगा। तरकारी मैं काट दूंगा और आटा भी मैं ही लगा दूंगा।' मानों
बद्री बाबू ने बड़ा
एहसान कर दिया मुझ पर। 'जैसा आप ठीक समझें बाबू। '
सामने उत्तर की तरफ की दीवार में टंगी लगभग १५
साल पुरनी घड़ी जिसके आस पास मकड़ी का जाला भी लगा था उसमे अब तक सात बज चुके थे।
मैंने समय देखने के लिहाज से गर्दन घुमाई तो बद्री बाबू बोल पड़े - 'अरे समय न देखो मास्टर अभी तो पूरी रात
बाकी है।' ' मतलब?' 'मतलब ये की तुमसे ढेर सारी बातें जो
करनी है। ' अच्छा
' मैंने अनभिज्ञता के स्वर में जवाब
दिया। 'अच्छा सुनो -
तुमने गौर किया है उस व्यायाम शाला के पीछे एक खिड़की है जिसमे लोहे की सरिया लगी
हुई है और जिसकी एक सरिया टूटी भी है। ' 'हाँ तो?' मैंने आश्चर्य भरे स्वर में बोला। 'मतलब ये कि हो सकता है की चोर उस खिड़की
से अंदर आने की कोशिश कर रहा हो लेकिन फिर वो अंदर आ न सका और इस चक्कर में एक
सरिया भी तोड़ डाली उसने। ' 'बद्री
बाबू वो खिड़की मात्रा दो फुट की होगी और उस से चोर क्या कोई चूहा भी नहीं आ सकता
ठीक से। आप भी न क्या क्या सोचते रहते हैं।' 'अच्छा तो बता की फिर चोर कहाँ से आया होगा अंदर?' 'मुझे
क्या मालूम बाबू। मुझे तो लगता है कहीं आप मुझे ही न चोर घोषित कर दें कल सुबह तक।
' बद्री बाबू मेरी
तरफ देखते रह गए।
हम दोनों ने स्वादिष्ट भोजन किया और फिर टहलने के लिए सड़क पर निकल पड़े। बद्री बाबू को टहलने और अपने स्वास्थ्य का ख़याला रखने का शौक था और मैं थोड़ा आलसी किस्म का व्यक्ति। पर फिर भी जब भी बद्री बाबू आते तो उनके साथ टहलने निकल जाता था। 'बाबू आप ठीक से तो हैं न घर पे। कोई तकलीफ या परेशानी तो नहीं आपको ?' 'क्यों रे मास्टर ऐसा क्यों पूछ रहा है ?' 'नहीं ऐसे ही बाबू मुझे कभी कभी आपकी फ़िक्र होती है' 'नहीं नहीं कोई दिक्कत नहीं मास्टर मैं बिलकुल ठीक हूँ।' बद्री बाबू दिल के बहुत अच्छे इंसान हैं। वक्त की मार ने उनको अकेला कर दिया वार्ना जब तक उनकी धर्म पत्नी थी तब तक बहुत खयाल रखते थे उनका और परिवार का भी। उनके जाने के बाद बेचारे टूट गए। इसलिए मैं उनकी खबर लेता रहता हूँ। टहलते टहलते हम व्यायाम शाला तक कब जा पहुंचे पता ही नहीं चला। वहां एक छोटा सा बल्ब जल रहा था। हमने सोचा चलो जा के देखते हैं क्या पता कुछ सुराख मिल जाये। हम दोनों उस खिड़की के पास जा पहुंचे जिसकी एक सरिया टूटी हुई थी। बद्री बाबू तांक झाँक के इरादे से खिड़की से अंदर झाँकने लगे। मैंने उनसे कहा - 'अरे बाबू ऐसे मत झांको कोई देख लेगा तो उल्टा हमें ही चोर समझेगा। ' 'अरे कुछ नहीं होगा हम कोई चोर थोड़े ही हैं ' बाबू का जवाब सुन कर मैं चुप हो गया। मैं कुछ सोच ही रहा था की बद्री बाबू तपाक से उछल पड़े और बोले - 'मास्टर मास्टर वो देखो चोर' ' कहाँ कहाँ ' मैंने भी चिल्ला के पूछा। 'अरे वो देखो रेत की बोरी के पीछे कुछ हलचल दिख रही है ' जब मैंने ध्यांन से अपनी आँखें मल के देखा तो मुझे भी कुछ हिलता हुआ नज़र आया। एक बार तो मैं डर गया की कहीं भूत प्रेत तो नहीं। फिर मेरे सात्विक मन ने मुझे समझाया 'अरे मास्टर भूत प्रेत देर रात में निकलते हैं रत को ९ बजे नहीं।' मैंने भी अंदर ही अंदर हामी भर दी। 'लेकिन बाबू वो क्या हो सकता है ?' 'शायद चोर वहां छुप के बैठा है बोरियों की आड़ में। ' मैंने भी सर हिलाया की हाँ हो सकता है ऐसा ही कुछ हो। 'बाबू चलो पुलिस को खबर करते हैं। ' 'अरे पुलिस से पहले गुड्डन पहलवान को खबर करते हैं वो दो चार पहलवानों को लाएगा और उस चोर की खुद ही मरम्मत कर देगा। तुम ऐसा करो यहीं रुक के चोर पे नजर रखो मैं दौड़ के गुड्डन को खबर करता हूँ।' मेरे पास हामी भरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था क्यों की गुड्डन को बद्री बाबू ही अच्छे से जानते थे और मुझे उसका घर भी नहीं पता था। बद्री बाबू ऐसे दौड़ लगा के गए जैसे उनकी दूसरी शादी का रिश्ता आया हो घर में ! और यहाँ मेरी हालत पतली हो रही थी की कहीं चोर निकल के बहार न आ जाय और मेरा कीमा न बना दे। मैं मन ही मन में सोच रहा था कहीं चोर मुश्तैद पहलवान हुआ तो? या शायद छुरा चाकू रखा हो! मैं भगवन से प्रार्थना कर रहा था की जल्दी से दो चार पहलवानों को भेज दें। इतने में मैंने देखा कि बद्री बाबू के साथ गुड्डन पहलवान और उनके दो और शागिर्द चले आ रहे थे। मेरी तो जान में जान आयी। 'कहाँ है वो चोर अभी साले को देखता हूँ ' गुड्डन ने तमतमायी आँखों से मेरी तरफ देखा। मैंने भी इशारे से खिड़की के अंदर छुपे संभावित चोर की तरफ ऊँगली दिखाई। 'सुनो मैं जा के धीरे से दरवाजा खोलता हूँ और अंदर जा के देखता हूँ , तुम सभी दरवाजे के पास खड़े रहना ताकि चोर जब भागे तो उसको दबोच लो। ' सब ने हामी भर दी। लेकिन मेरी तो हालत ही ख़राब हो रही थी कहीं वो चोर मुझ पर न हमला कर दे। आखिरकार चोर का पता तो मैंने ही बताया था सबको और शरीर से देखा जाये तो सबसे सरल और संभावित शिकार मैं ही था उस चोर के लिए। गुड्डन धीरे से दरवाजा खोल के अंदर गया और हम सब दुबक के दरवाजे पर ही खड़े रहे। सबसे पहले उसने सामने की बोरी हटाई , फिर दूसरी और फिर तीसरी। कुछ नहीं दिखा उसको। 'कुछ दिखा क्या गुड्डन?' बद्री बाबू ने हिम्मत भरे स्वर में पूछा' 'नहीं कुछ नहीं' फिर पास में पड़े लोहे की जाली को सरकाया वहां भी कुछ नहीं था। इतने में हम सब भी अंदर हो लिए की आखिर चोर गया कहाँ। 'मास्टर जी आपने अच्छे से तो देखा था न चोर को?' मैं और बद्री बाबू एक दूसरे का मू देखने लगे फिर बद्री बाबू बोले 'अरे हाँ हाँ मैंने भी तो देखा था वो बोरी हिल रही थी। वहीँ था चोर। 'वहीँ था तो फिर गया कहाँ?' फिर गुड्डन ने आखिर में रखे हुए लकड़ी के दरवाजे को सरकाया तो तेजी से सरसराती हुई एक मोटी ताजी बिल्ली वहां से निकल के दरवाजे के रास्ते से बाहर की ओर भागी। गुड्डन भी उसके पीछे लपका लेकिन तब तक वो गायब हो चुकी थी। सब यहाँ वहां तितर बितर हो गए। 'अरे बद्री बाबू यही था क्या आपका चोर?' बद्री बाबू को मानो सांप सूंघ गया हो। समझ नहीं पा रहे थे की चोर को समझने में उनसे गलती हो गयी या जासूसी कुछ ज्यादा ही सर पर चढ़ गयी थी। सब ठहाके मार मार के हंस रहे थे और बद्री बाबू खड़े खड़े अपना सर खुजा रहे थे।