Thursday, March 5, 2020

Blood Relation!

खूनी रिश्ता !

ये खून का रिश्ता होता ही गजब का है। परायों को अपना और अपनों को और भी अपना बना देता है।  वैसे तो खून का रंग लाल होता है और हर जीव में पाया जाता है लेकिन फिर भी हम प्रकृति की इस एकता की मिसाल को कभी समझ ही नहीं पाते और एक दूसरे से बैर करते रहते हैं। कभी जाती के नाम पर कभी धर्म के नाम पर कभी कर्म के नाम पर।

पिछले दिनों मुझे एक 'खून का रिश्ता' निभाने का मौका मिला। वक्त था एक गरीब परिवार के मज़दूर को खून देने का। वैसे तो मैंने पिछले तीन मौकों पर रक्त दान किया था लेकिन कभी ऐसा मौका नहीं आया की किसी गरीब को खून देना पड़ा हो। समय लगभग सुबह के 11 बजे का था मैं अपने काम में व्यस्त था तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी और एक स्वयं सेवी संस्था की तरफ से नितेश नाम के लड़के ने बात की - 'भैया यदि आप फ्री हों तो क्या आप सरकारी अस्पताल आ सकते हैं?' मैंने पूछा-  'क्या हुआ ?' - 'भैया एक गरीब आदमी है उसको पीलिया बिगड़ जाने की वजह से शरीर में खून की बहुत कमी हो गयी है और डॉक्टर ने उसे तुरंत खून चढाने की सलाह दी है , लेकिन इस वक्त यहाँ के ब्लड बैंक में बी पॉजिटिव ग्रुप का ब्लड नहीं है। 'मेने थोड़ी देर सोचा और फिर पुछा-  'तुम्हारे साथ और कौन कौन है ?' 'भैया एक अंकल हैं जो उस गरीब को लेकर यहाँ आये हैं और उसको भर्ती किये हैं।' मेने स्थिति की गंभीरता और मेरी उपस्थिति दोनों को समझा और उसकी मदद के लिए जाने का फैसला किया।

लगभग आधे घंटे में मैं सरकारी अस्पताल पहुंच चुका था। शायद 25 साल बाद मैं इस सरकारी अस्पताल में गया था और वहां की भीड़ और लोगों की तकलीफ से भरे हुए चेहरों को देख के फिर से भारत में गरीबी के आंकड़ों का एक सैलाब मेरी आँखों के सामने आगया। दर्द से कराहते हुए, गरीबी की बोझ तले दबे हुए, असहाय से अबोध चेहरे मेरे सामने थे। कोई ज़मीन में बैठा था, कोई स्ट्रेचर में अपने इलाज के शुरू होने के इंतज़ार में लेटा था, कोई अपनों को दरवाजे के सहारे टिका कर  काउंटर से पर्ची बनवा रहा था तो कोई अपने हाँथ में ग्लूकोज़ की बोतल उठाये नर्स के आने के इंतज़ार में आँखें बिछाये बैठा था। मानों सब के सब किसी 'सामूहिक स्वास्थ्य भंडारे' में शामिल होने आये हों और सबको यकीन हो कि उनके हाँथ कुछ न कुछ तो आ ही जाएगा।

बहरहाल मैं तेजी से ब्लड बैंक की तरफ भागा जहाँ मेरा इंतज़ार 'खून चूसक यंत्र' के साथ अस्पताल का स्टाफ इंतज़ार कर रहा था। मेने उस मरीज़ का हाल चाल पूछा तो पता चला की वो भर्ती करा दिया गया है और जल्द से जल्द खून चढ़ना है। मैं कुछ औपचारिकता पूरी करने के बाद सामने रखी ब्लड डोनेशन चेयर पर जा कर बैठ गया। मेरे आस्तीन को ऊपर कर के स्ट्रिप बाँधी गयी और फिर बड़ी बेरहमी से एक मोटी सी सुई मेरी उभरी हुई लहलहाती नस में घुसेड़ दी गयी ! 'आराम से मैडम !' मैंने सामने खड़ी नर्स को अपने जीवित होने, और 'मर्द को भी दर्द होता है', का एहसास दिलाया। मेरा खून उस थैली में, जिसकी एक छोर मेरी नसों से जुड़ी थी, ऐसी तेजी से बहना शुरू हुआ मानो बाँध के खुलने से पानी बह रहा हो! मन ही मन मैं सोच रहा था कैसी विडम्बना है की जिस खून के प्यासे कुछ लोग ज़िन्दगी भर रहते हैं और बड़ी बेरहमी से किसी की जान तक ले लेते हैं उसी खून की आवश्यकता किसी इंसान को जीवन देने में कितनी अधिक होती है। आज तक इस देश में जितने भी बेगुनाहों का लाखों लीटर खून बहा है यदि वे जीवित होते तो उसका सदुपयोग आज दुनिया भर के लाखों लोगों को नया जीवन देने में हो सकता था। रक्त दान के बाद मैंने सोचा की उस गरीब आदमी से भी मिल के आना चाहिए जिसको खून की आवश्यकता है। मैं पुरुष वार्ड में गया तो देखा उस आदमी का पूरा चेहरा पीला पड़ा हुआ था। हाँथ पैर किसी कुपोषित बच्चे के सामान बेहद पतले थे। मुझे आत्म संतोष हुआ की मेरा खून किसी के काम तो आया और मन ही मन प्रार्थना किया की ईश्वर इसे जल्द से जल्द स्वस्थ करें।

दो दिन के बाद मुझे लगा की मैं फिर से एक बार उस गरीब को देख आऊं की उसकी स्थिति कैसी है। जब मैं  उसके पास पहुंचा तो वो मुझे देखते ही तुरंत बिस्तर पर बैठ गया और मुस्कुराने लगा जबकि उसको एक बोतल खून उस वक्त चढ़ रहा था। मैंने उसे आराम से लेटे रहने को कहा और हाल चाल पूछा। मुझे ये जान कर बहुत ख़ुशी हुई की उसकी स्थिति पहले से सुधर रही है और अब वो अच्छा महसूस कर रहा है। फिर उसने मुझे बताया की ये तीसरी बोतल खून है जो इस वख उसको चढ़ रहा है। फिर बोला - 'भैया जो आपने खून दिया था वो मुझे सबसे पहले चढ़ाया गया है परसों के दिन। ' ये सुन के मुझे जो ख़ुशी हुई वो अद्भुद थी। मैं उस व्यक्ति के सामने खड़ा था जिसकी नसों में मेरा खून दौड़ रहा था! वाह क्या बात है ! ये कोई अहंकार के भाव नहीं थे बल्कि अद्भुद आत्म संतुष्टि के भाव थे। मेरी रगों का खून किसी के जीवन को बचाने में काम आये ये एक अलग ही एहसास था। मैंने जाते जाते उससे उसकी ज़रुरत के सामान या खाने पीने की चीज़ों की जानकारी ली और फिर वहां से मन में संतोष और प्रसन्नता का भाव लेकर चला गया।

काश हम सब मिलके इस खून के रिश्ते को निभा सकें और हमेशा एक दुसरे से प्रेम और सेवा का भाव रख सकें।